Sunday, July 12, 2015

चार बातें


(I)

डसा जा चुका है उसे इतनी बार 
कि अब न उस पर छाती है बेहोशी
न होता है उसे दर्द 
अब बस घुलता जा रहा है ज़हर 
उसकी नस नस में.

(II)
पंछी को बंद कर पिंजरे में 
नहीं सिखाया जा सकता उड़ना।
पिंजरे का बंद पंछी 
नहीं करता है कलरव 
पड़ा रहता है होकर कतार बद्ध 
चुपचाप, "अनुशासित"।

(III)

बर्दाश्त नहीं हो पा रहे थे 
तुम्हारे ये नकली मुखौटे।
जलने लगा था मेरा चेहरा।
अब मैंने भी एक मुखौटा बना लिया है 
तुम्हारे सामने खड़े हो पाने के लिए।

(IV)

लगा कर उसके मुंह में लगाम 
और बना कर उसे नपुंसक 
"शाबाश घोड़ा" कहना, 
उदारता नहीं,
उस पर किया एक क्रूर अट्टहास है|

-Prashant Verma

Thursday, February 26, 2015

कुछ दोहे NPA के नाम

परेड ऐसी कीजिये, पीछे वाला कदम मिला न पाय ।
भरपूर सजा उसको मिले, आप मंद मंद मुस्काएं ॥

सुख चैन गया, आनंद गया, कुतवा सी बन गयी शकल|
जब जब उस्ताद ने कहा, छोटा कदम दौड़ के चल||

मकरागिरी ऐसे  कीजिये, उस्ताद  देख ना पाये ।
PT भर आराम करो, NAP भी बच जाये ॥

 वे सब OT धन्य है, पर  उपकारी अंग ।
असाइनमेंट शेयर करे, जो पूरे बैच के संग ॥

 दौड़ावत कोई और है, आर्डर दे दिन रैन ।
सब भरम DI पर करें, कि छीन लिया सुख चैन ॥

 सूरज की पहली किरण, संग शिशु भोली मुस्कान ।
बेचारे OT आ गए करने विश्राम सावधान ॥

 झूठी आशाओं के शाख पर, दिए फ़र्ज़ी  विश्वास ।
सफ़ेद झूठ उस्ताद कहें "लास्ट राउंड, शाबाश" ॥

 दौड़त दौड़त थक गया, जब सांस हुई कमजोर ।
पूछ रहा OT खड़ा, अबे वाटर पॉइंट किस ओर ॥

 घूमे पूरी  आज़ादी से NPA में कुत्ता बिल्ली ।
एक-दो-एक करते OT की खूब उड़ाते खिल्ली ॥

 ट्रेनी के लिए आराम शब्द, मिथ्या है मेरे यार ।
आधी रात फॉल-इन हुआ, न जाने कितनी बार ॥

 -प्रशान्त वर्मा 

Tuesday, January 10, 2012

भेड़िये

भेड़िये,
बनाकर डॉक्टर का भेष
नोचते है मांस,
सर्जरी के नाम पर.

वो जाते हैं सदियों और समन्दरो के पार,
इतिहास और भूगोल के रेगिस्तान में.
खोजने बीमारियाँ एक स्वस्थ समाज में.
करके छोड़ते हैं उसे अपंग,
और छोड़ देते हैं कीड़े, कुरेद कर उसके घावो को.
फिर उसे बैसाखी देकर,
उसकी टांगो से मांस नोच खाते हैं.

वो खोजते हैं नए नए तरीके,
बस उसे जिन्दा रखने के,
सिखाते हैं उसे कैसे अपने ही अंगो को,
प्रोसे
सिंग और कोल्ड चेन से गुज़ारने के बाद,
खाकर स्वस्थ रहा जा सकता है.
राज़ी करते हैं उसे, अपने ही कलाई काटने के लिए.
बताकर कि कैसे उसकी कलाइयाँ सोख लेती है,
सारा का सारा पोषण जो होता है उँगलियों के लिए.

उन्हें आता है कागज़ पर खीचना
कुछ आड़ी तिरछी रेखाएं.
जिनके जरिये वो बताते हैं उसे की,
अपनी दोनों कलाईयाँ काट कर खा लेने के बाद,
उसके खून में कोलेस्ट्राल की मात्रा घट रही है.
और उसके चेहरे पर आई चमक से दुनिया हैरान है.

वे कर बैठे हैं काबू उसके दिमाग पर,
इतनी गहरे से कि समझा देते हैं उसे,
कि उसके कटे हुए घावो से बहता हुआ केसरिया खून,
दरअसल एक जहर है,
जिसे उसे निकल देना चाहिए जल्द से जल्द.
क्यूंकि अब उन्हें जीवित मांस कि आवश्यकता नहीं,
उनकी अगली पीढ़ी में पैदा हो रहे हैं
गिद्ध,
जो आसमान में रहते हैं,
बस आते हैं नीचे जमीन पर,

उसके शरीर के टुकड़ो को नोच कर
वापस उड़ जाने के लिए.



-- प्रशान्त वर्मा

Friday, September 17, 2010

दृष्टिकोण

अक्सर हमें ऐसा लगता है की शक्ति और सत्ता आदमी को भ्रष्ट कर देती है. वो भूल जाता है अपने पुराने वादे और बदल देता है अपनी कथनी करनी पर ऐसा नहीं है सिर्फ दृष्टिकोण बदल जाते हैं. अगर आप नहीं मानते तो बस एक बार नीचे लिखे हुए इस घोषणा पत्र पर नज़र डालिए जो किसी नेता ने चुनाव के पहले लिखा था.


आप सब
इस बात को मानेगे ही
जीवन दिन प्रतिदिन दूभर होता जा रहा है| हमारी
नयी सरकार के आने के बाद आप यह महसूस करेंगे कि सामान्य नागरिक का
जीवन स्तर निरंतर बढेगा |
पूंजीपति, व्यापारी एवं धनाढ्य वर्ग का
बढ़ावा देने वाली नीतिया समाप्त की जायेंगी |
रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं को
हम नित नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए दिन प्रतिदिन तत्पर रहेंगे|
इस समाज से गरीबी, भूख, आतंक और भ्रष्टाचार जैसी चीजो को
नामो निशान से मिटा दिया जाएगा |
अपने पर्यावरण, वन सम्पदा एवं वन्य जीवन
पूरी तरह से संरक्षित होंगे |
समाज के सभी असामाजिक तत्व और अपराधी
भयग्रस्त रहेंगे |
आप हमारे शासन के शुरू होते ही
सुख, समृधि एवं सम्पन्नता में वृद्धि पायेंगे |
आप मेरी
बात का विश्वास कीजिये|
वोट देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!!



दरअसल ये उल्टा छाप गया थाफर्क सिर्फ दृष्टिकोण का हैं इसे एक बार उल्टा पढ़ लीजिये |

वोट देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!!
बात का विश्वास कीजिये|
आप मेरी
सुख, समृधि एवं सम्पन्नता में वृद्धि पायेंगे |
आप हमारे शासन के शुरू होते ही
भयग्रस्त रहेंगे |
समाज के सभी असामाजिक तत्व और अपराधी
पूरी तरह से संरक्षित होंगे |
अपने पर्यावरण, वन सम्पदा एवं वन्य जीवन
नामो निशान से मिटा दिया जाएगा |
इस समाज से गरीबी, भूख, आतंक और भ्रष्टाचा जैसी चीजो को
हम नित नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए दिन प्रतिदिन तत्पर रहेंगे|
रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं को
बढ़ावा देने वाली नीतिया समाप्त की जायेंगी |
पूंजीपति, व्यापारी एवं धनाढ्य वर्ग का
जीवन स्तर निरंतर बढेगा |
नयी सरकार के आने के बाद आप यह महसूस करेंगे कि सामान्य नागरिक का
जीवन दिन प्रतिदिन दूभर होता जा रहा है| हमारी
इस बात को मानेगे ही
आप सब

Monday, September 13, 2010

संगणक के दोहे

C++, java दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय
बलिहारी C++ की, सेकण्ड ईयर दियो पहुंचाए

डिजाइन ऐसी दीजिये, कछु समझ न आये
डेवलपर कन्फ्यूज हो के गिरे, आप मंद मंद मुस्काये


रात गंवाई चैट पे , दिवस गंवाया सोय
अंत समय दस लाख का वेतन कहाँ से होय

रहिमन कोड जो चल गया, मत छेड़ो अधिकाय
छेड़े से फिर न चले, चले पैच लग जाए


इरर मरी न बग मरा, मर-मर गए शरीर
बिन गूगल कोडिंग कब हुई , कह गए दास कबीर


कोडिंग बस इतना कीजिये, टेस्ट पास हो जाये
जॉब तुम्हारी चला करे, टेस्टर भी बच जाए


प्रोग्राम चला चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह
कोड में जिनके बग नहीं, वे शाहन के शाह

गूगल याहू सर्च कर, सबमिट कर प्रोग्राम
पड़ी रहन दो गुठलिया, सीधा खाओ आम


नींद गयी, आनंद गया और गया आराम
जब जब मैनेजर ने कहा, कल से है कुछ काम

गूगल याहू छान के, कोड लियो टपाए
ई कोड मा इतनी दम कहाँ, टेस्ट पास कर जाए

Wednesday, September 8, 2010

दफ्तर

आई टी के बड़े दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

अटपटी-उलझी लाइने,
खोपड़ी को खींच खाऐं,
इरर इनमे आये अचानक,
प्राण को कस लें कपाऐं।
सांप सी काली लाइने
बला की पाली लाइने
लाइनों के बने दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

रिक्वायरमेंट के जाल सर पर,
डेड लाइन के बवाल सर पर
रात भर कोड करके
लगा झंडू बाम सर पर,
इरर सारीवहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

मैनेजरों से भरे दफ्तर
मानव पहुँच से परे दफ्तर
सात-सात स्टेज वाले,
बड़ी छोटी मेज वाले,
क्यूब वाले चेयर वाले,
स्टॉक और शेयर वाले,
कम्प से कनकने दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

कोड टेढ़े और मेढ़े
कन्फ्यूज करके ही ये छोड़े
सड़ी लाइने , गली लाइने,
ऐसी लाइने , वैसी लाइने,
कोड को ढँक रहे-सी
बेवकूफ की लिखी लाइने।
पढो इनको पढ़ सको तो,
बदलो इनको बदल सको तो,
ये घिनोने, घने दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

क्यूब तक ही फैला हुआ सा,
मृत्यु तक मैला हुआ सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
कैद खाना जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे बुरे दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

आओ इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
बी टेक कर चलते अनेकों,
एमसीऐ कर बहकते अनेकों,
फ्रेशर गोरे और काले,
इन दफ्तरों ने गोद पाले।
ज्वाइन करे अज्ञात कलियाँ,
हमें मिले न एक फ़लियाँ,
फ्रसट्रेशन से भरे दफ्तर
काम से ऊबे हुए से
ऊँघते अनमने दफ्तर।

Wednesday, September 1, 2010

सत्य वचन कह कर तुमने
क्या नवीन निर्माण किया
जो था धरा पर इसी जगह
उसका ही तो बखान किया

है सृजन झूठ में जितना
सत्य कहाँ उसे पायेगा
नित नवीन सृष्टि के दर्शन
सत्य कहा दिखलायेगा

असत्य बोलना ही तो सृजन हैं
असत्य बिन कहाँ परिवर्तन है

सृष्टि सत्य की रहे यथावत
असत्य क्रमिक विकास की गाथा
एक झूठ सौ झूठ बनाये
सत्य कहाँ इतना चंचल है

बाते अक्सर सत्य बिगाड़े
झूठ मुफ्त बदनाम हुआ
झूठ भरोसे दुनिया चलती
सत्य कहाँ इतना संबल है

झूठ सफलता की कुंजी
आख खोल जग तो देखो
विपदाओ के सर्द सत्य में
झूठ बना हुआ कम्बल है

झूठ तुम्हारा मरते दम तक
संग तुम्हारे लड़ता है
सत्य कहाँ इतना बलशाली
अक्सर धोखा देता है

झूठ बोलना भी एक कला है
सत्य कोई भी बक सकता है
आखो देखा हाल सुनना
कोई चैनल कर सकता है

जो नहीं भुवन में हुआ आज तक
झूठ उसे भी ला सकता है
सत्य ईश की निर्मित रचना
को ही तो बतला सकता है

दोषयुक्त इस सत्य विश्व में
झूठ बोलना ही वैभव है
आओ अपना विश्व रचे
ये झूठ झूठ में संभव है